गाँव शब्द सुनते ही मन में सुकून की लहर दौड़ पड़ती है, जहां प्राकृतिक संसाधन के साथ मानव व्यवहार में अपनत्व का मिठास घुली होती
कुमार रोजाना अपने कार्यालय सेवा के पश्चात कुछ देर ओला बाइक राइड करता है और राहगीरों को उनके मंज़िल तक पहुँचाने का काम करता है।
इंद्राणी यानी मेरी मां… मां अब केवल चूल्हा- चौका के साथ परिवार ही नहीं चलाती… बल्कि अब वह एक सशक्त और जिम्मेदार महिला है। दफ़्तर
दीपावली के एक सप्ताह बाद कुमार आज शहर से गांव आया है। सामान्यतः सभी लोग कोई भी तीज-त्यौहार अपनों के बीच मनाना चाहते हैं और
बीस साल पुराने विद्यालय की आज की तस्वीर आज आदि के पुराने विद्यालय में स्नेह मिलन समारोह आयोजित किया गया है, जहाँ 25 वर्ष पुराने
काश मैं तू और तुम बन जाऊँ यूँ हम और आप से परे फिर से तेरा और तुम्हारा कहलाऊँ। एक उम्र पर पहुँच कर ऐसा
यद्यपि पायलट ट्रेनिंग को बंद हुए 14 माह से अधिक समय हो चुके थे, लेकिन मनो मस्तिष्क से वह एटीट्यूड अभी तक खत्म नहीं हुआ
अभी तो गाँव की गली में धूल मिटटी से खेलने की उम्र थी। वैसे तो बलवंत सभ्य परिवार से ताल्लुक रखता था लेकिन अगर 90
हमारा समाज कभी भी कंपीटिटिव या प्रतिस्पर्धी नहीं रहा। हम तो हमेशा ही कोआपरेटिव यानि समाज के सहयोगी रहे हैं। शासकीय क्षेत्र हो या फिर
प्रफुल्ल को आज घर से निकलने में थोड़ी देर हो गई थी दौड़ते दौड़ते उसको बस पकड़ना पड़ा था। चूँकि 11 बजे के बाद फिर